मंगलवार, 19 जुलाई 2011

वंदना जी का चर्चा मंच से विदा लेने का संकेत !

खबर अच्छी  नहीं है .चर्चा मंच पर कर्मठता के साथ बेहतरीन  चर्चा प्रस्तुत करने वाली हम  सबकी  प्रिय  वंदना जी न जाने  किन  कारणों  से चर्चा मंच से विदाई  लेने का मन बना चुकी हैं .उन्होंने  कल  अपनी  चर्चा में  इस  ओर  संकेत किया  है .आप   चर्चा मंच की कल प्रस्तुत की गयी चर्चा को देखकर इस खबर की सत्यता को परख  सकते  हैं . चर्चा-मंच का URL है-http://charchamanch.blogspot.com
                                                                शिखा कौशिक 

5 टिप्‍पणियां:

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

ये सच अहि तो बहुत दुखद है

Shalini kaushik ने कहा…

अंकित जी ये सच है और अभी देख कर आ रही हूँ उनका नाम वहां से हट चुका है बहुत याद आएँगी उनकी प्रस्तुति जो वाकई सराहनीय होती थी.शिखा जी सूचना के लिए आभार.

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

हमें भी याद आएँगी उनकी रचनाएँ परन्तु यदि उन्होंने हमते का निर्णय लिया है तो अवश्य ही उसके पीछे कोई कारण रहा होगा और आशा है की वो अपने प्रसंशकों को निराश नहीं करेंगी |

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

मेरे बड़े भाई हरीश सिंह, प्रधान संपादक शिखा कौशिक जी एवं मेरे सभी आलोचक, अपने कथन के अनुसार-अपने आलोचकों के नाम अपने ब्लॉग के शीर्ष स्थान से हटा रहा हूँ. पिछले तीन-चार दिन से मौसम बदलने के कारण जुकाम,बुखार और खांसी से पीड़ित था. इसलिए कल रात को ली दवाइयों के नशे के कारण आज देरी से उठने और फिर अपनी दिनचर्या के बाद कम्पुटर पर अपनी प्राथिमकता के कार्य निपटने के बाद आपको सूचित कर रहा हूँ.
अगर आप आलोचकों के नाम हटाने से संबंधित किसी को भी आपत्ति हो तो दो घंटे में मुझे तर्क सहित सूचित करें. मैं उस मैटर को सही तर्क सहित आपत्ति मिलने पर हमेशा अपने ब्लॉग पर यथासंभव स्थान पर रख सकता हूँ.उसको हटाने से पहले अपना नैतिक फर्ज अदा करते हुए सूचित कर रहा हूँ.सूचित देरी से करने के लिये क्षमा चाहता हूँ.
आप मुझे "बड़ा" ब्लोग्गर कहकर इस मंच पर मेरा मजाक उड़ाते हैं. मैं बड़ा नहीं हूँ, मेरे उसूल कहूँ या सिध्दांत बड़े हैं और उनपर मुझे फख्र है और गर्व है. मैं किसी सच का गला नहीं घोटता हूँ. नीचे लिखी एक छोटी-सी बात से बात खत्म कर रहा हूँ.
कबीरदास जी अपने एक दोहे में कहते हैं कि-"ऊँचे कुल में जन्म लेने से ही कोई ऊँचा नहीं हो जाता. इसके लिए हमारे कर्म भी ऊँचे होने चाहिए. यदि हमारा कुल ऊँचा है और हमारे कर्म ऊँचे नहीं है, तब हम सोने के उस घड़े के समान है. जिसमें शराब भरी होती है. श्रेष्ठ धातु के कारण सोने के घड़े की सब सराहना करेंगे.लेकिन यदि उसमें शराब भरी हो तब सभी अच्छे लोग उसकी निंदा करेंगे. इसी तरह से ऊँचे कुल की तो सभी सराहना करेंगे, लेकिन ऊँचे कुल का व्यक्ति गलत कार्य करेगा. तब उसकी निंदा ही करेंगे.

मुझे आज एक ईमेल प्राप्त हुई और उसके जवाब को अपनी ईमानदारी और सच्चाई के अवलोकन हेतु पेस्ट कर रहा हूँ.जिसका जवाब देना आपको सूचित करने से पहले मुझे उचित लगा था.

श्रीमान आकाश ने अपनी ईमेल हिंदी में तो लिखी है,मगर शायद मंगल फॉण्ट में नहीं लिखी है.इसलिए यहाँ नहीं आ पा रही हैं. अगर कोई वकील,पत्रकार,आंकड़ों पर शोध करने वाला या अन्य कोई इनकी कोई मदद करना चाहता है.तब उसको यह ईमेल भेज सकता हूँ.इसलिए केवल मेरा जवाब ही यहाँ पर देखे.

प्रिय आकाश जी,
आपने इस नाचीज़ को अपनी मदद के योग्य पाया. यह मेरा सौभाग्य है. मैं आज भी 498ए और 406 की फर्जी धारों में फँसा हुआ हूँ. मगर आप यह माने कि-मैं आपकी कोई मदद करने से इंकार कर रहा हूँ. आप अपनी पूरी बात संपूर्ण जानकारी और सबूतों के साथ भेजें. मैं यथासंभव आपकी तन और मन से मदद करूँगा. मेरे पास धन का अभाव है.इसलिए कृपया आप मुझसे धन के संदर्भ में मदद की उम्मीद ना करें. आप मुझे फोन भी कर सकते हैं. मुझे किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी. मगर ध्यान रखे अपनी पूरी बात हिंदी में ही रखे. अंग्रेजी में कही बातें समझने में असमर्थ हूँ. वैसे मुझे तीन-दिन से बुखार आ रहा था और दवाई खाने के बाद कल जल्दी(रात 12 बजे) सो गया था. आपने मेरे प्रति ऐसा विचार किया कि काफी देर से परेशान करना. यह आपकी महानता है. उसको मैं नमन करता हूँ. आपकी ईमेल और फोन की प्रतीक्षा में आपका यह नाचीज़ सेवक ...................
नोट : अगर आप किसी प्रकार का पत्र-व्यवहार करना चाहे तो मेरे ब्लोगों की प्रोफाइल में पूरा पता है.समय मिलने पर मेरे ब्लोगों को जरुर पढ़ें और उसमें गलतियों की निष्पक्ष और निडर होकर आलोचना जरुर करें.

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे."प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट"