लेडी रचना ने शिखा कौशिक जी और शालिनी कौशिक जी, दोनों को ही ‘नारी‘ ब्लॉग से आउट कर दिया।
कारण ?
कारण केवल यह है कि लेडी रचना उन दोनों पर अपनी पसंद-नापसंद थोप रही थीं। वे जिस आदमी को नापसंद करती हैं, उसके ब्लॉग में वे लेख लिखती हैं।
लेकिन सवाल यह है कि उन्होंने बलि चढ़ाने के लिए ये दो ब्राह्मण कन्याएं ही क्यों चुनीं ?
उस आदमी के ब्लॉग में तो बहुत सी प्रतिष्ठित साहित्यकाराएं तक शामिल हैं।
बात यह है कि तानाशाही की चक्की में अपेक्षाकृत कमज़ोर ही पीसे जाते हैं। ये दोनों बहनें अपेक्षाकृत नई हैं और किसी गुट में भी नहीं हैं। ख़ुशामद और चापलूसी भी इनके मिज़ाज में नहीं है लिहाज़ा इन्हें पीसने के बाद लेडी रचना को किसी तूफ़ान के उठने की उम्मीद नहीं है।
नारी अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करने वाली लेडी रचना ने दो नारियों की व्यक्तिगत पसंद-नापसंद के अधिकार का और राय की आज़ादी के इज़्हार के हक़ का ख़ून कर डाला और इस तानाशाही को नाम दिया इंसाफ़ का।
अगर यही इंसाफ़ है तो दो के साथ ही यह बर्ताव क्यों जबकि यह जुर्म तो और भी नारियां कर रही हैं और फिर भी वे ‘नारी‘ ब्लॉग में लिख रही हैं ?
आप बताएं कि क्या लेडी रचना का यह क़दम ब्लॉगिंग और इंसानियत के लिहाज़ से ठीक है ?
इसी के साथ यह भी देख लीजिए कि बोलते समय वे किस तरह की गालियों और मुहावरों का प्रयोग करती हैं ?
क्या इस तरह की अहंकारपूर्ण अभद्र भाषा बोलने वाली महिला को अपने लिए किसी सम्मान की आशा रखनी चाहिए ?
कारण ?
कारण केवल यह है कि लेडी रचना उन दोनों पर अपनी पसंद-नापसंद थोप रही थीं। वे जिस आदमी को नापसंद करती हैं, उसके ब्लॉग में वे लेख लिखती हैं।
लेकिन सवाल यह है कि उन्होंने बलि चढ़ाने के लिए ये दो ब्राह्मण कन्याएं ही क्यों चुनीं ?
उस आदमी के ब्लॉग में तो बहुत सी प्रतिष्ठित साहित्यकाराएं तक शामिल हैं।
बात यह है कि तानाशाही की चक्की में अपेक्षाकृत कमज़ोर ही पीसे जाते हैं। ये दोनों बहनें अपेक्षाकृत नई हैं और किसी गुट में भी नहीं हैं। ख़ुशामद और चापलूसी भी इनके मिज़ाज में नहीं है लिहाज़ा इन्हें पीसने के बाद लेडी रचना को किसी तूफ़ान के उठने की उम्मीद नहीं है।
नारी अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करने वाली लेडी रचना ने दो नारियों की व्यक्तिगत पसंद-नापसंद के अधिकार का और राय की आज़ादी के इज़्हार के हक़ का ख़ून कर डाला और इस तानाशाही को नाम दिया इंसाफ़ का।
अगर यही इंसाफ़ है तो दो के साथ ही यह बर्ताव क्यों जबकि यह जुर्म तो और भी नारियां कर रही हैं और फिर भी वे ‘नारी‘ ब्लॉग में लिख रही हैं ?
आप बताएं कि क्या लेडी रचना का यह क़दम ब्लॉगिंग और इंसानियत के लिहाज़ से ठीक है ?
इसी के साथ यह भी देख लीजिए कि बोलते समय वे किस तरह की गालियों और मुहावरों का प्रयोग करती हैं ?
क्या इस तरह की अहंकारपूर्ण अभद्र भाषा बोलने वाली महिला को अपने लिए किसी सम्मान की आशा रखनी चाहिए ?
पूरी तफ़्सील जानने के लिए देखिए शिखा कौशिक जी की रिपोर्ट
8 टिप्पणियां:
हम अनपढ़, गंवार कुछ नहीं समझे कोई हिंदी में कुछ कहता या लिखता तब समझ आती. पढ़े-लिखे की लड़ाई में हम क्यों पड़े. जब सब ब्लोग्गर दूर खड़े होकर तमाशा देख रहे हैं, तब हम क्यों न देखें? हम तो ठहरे वैसे भी अनपढ़, गंवार और सिरफिरा.
अनवर जी -आपके द्वारा इस मुद्दे पर दिया गया समर्थन तारीफ के काबिल है .मेरे आलेख की भावना को आपने सही तरह समझा है .यह मेरा निजी मामला नहीं है .एक ब्लॉग से हटाया जाना भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं .बात केवल इतनी सी है कि क्या हम विचारों की लड़ाई को व्यक्तित्व से जोड़कर किसी पर कुछ भी आरोप लगा सकते हैं .BBLM के तकनीकी सलाहकार योगेन्द्र जी ने तो मेरी इस पोस्ट को ही BBLM के योग्य नहीं माना क्योंकि उनका मानना हो सकता है की यह मेरा निजी मामला है और चैट व् मेल को ब्लॉग पोस्ट में शामिल करना निजता का हनन है पर विस्तृत दृष्टिकोण से विचार करें तो ये मामला प्रत्येक ब्लोगर की आजादी पर कुठाराघात है .अब या तो सामूहिक ब्लॉग पर यह नियम चसपा कर दिया जाये की आप इस ब्लॉग पर तभी सदस्यता ले सकते हैं जब आप ''XYZ ''व्यक्ति से कोई मतलब नहीं रखेंगे .जब आप ऐसा कोई नियम नहीं चसपा करते हैं तब ''XYZ ''से या उसके ब्लॉग से जुड़ने पर आपको क्यों कोई आपत्ति है .अंत में बस इतना कहना चाहूंगी कि सारे ब्लॉग जगत को ऐसी पोस्ट पर सांप सूंघ जाता है और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को बड़ा बढ़-चढ़ कर लिखते हैं .अरे भाई ये भी तो भ्रष्टाचार का ही रूप है .रमेश जी का शुक्रिया भी ह्रदय से करती हूँ .
आदरणीय शिखा कौशिक जी, आप भी आज उसी द्वध्द से लड़ रही है.जिससे कुछ दिनों पहले मैंने भी इस मंच पर लड़ा था. उसदिन सभी को डॉ अनवर जमाल खान बुरे नज़र आ रहे थें.तब मैंने भी चैटिंग को शामिल करते हुए अपनी जिम्मेदारियां की जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की थीं. तब सम्मानीय और आपकी दोस्त शालिनी कौशिक ने इसी मंच पर उसको मेरी निजी मामला/ख़बरें कहकर अपमानित किया था. जब कोई ब्लोग्गर किसी के निजी दुःख और सुख में साथ नहीं दें सकते हैं. तब क्यों यह दोस्ती और भाईचारे का ढोंग? आज तक सिरफिरा ने "सच" का साथ दिया है और देता रहेगा.
आज आप किन हालातों से गुजर रही हैं. मैं यह भली-भांति समझ सकता हूँ. वैसे तो आपके इस मंच पर भी यह पोस्ट इस मंच के मापदंड को पूरा नहीं करती हैं. इसमें भी किसी की निजी समस्या है. इस मंच के उद्देश्य को पूरा नहीं करती हैं. मगर यहाँ पोस्ट डालने वाले भाई अनवर जमाल खान साहब की हैसियत और जिसकी यह समस्या(प्रधान संपादक)है, उनकी हैसियत मेरे से लाख गुना बड़ी है. आखिर यह भेदभाव क्यों? सिर्फ इसलिए मैं गरीब, लाचार, कमजोर था. गरीब, लाचार और कमजोर को कोई भी थप्पड़ मार लेता हैं. अपने से ताकतवर को मारे तब बहादुरी है. आज कहाँ गई इस मंच के मंडल और मालिक की ताकत? उस दिन एक-दो को छोड़कर बाकी मौन थें और आज भी मौन क्यों है? यानि यहाँ पर तमाशा देखने वाले ज्यादा है. बल्कि आगे बढ़कर "सच" का समर्थन करने वाले कम है. मैंने जो कहा करके दिखाया और आगे भी दिखता रहूँगा. इसका सबूत भी उन्हें ईमेल करके दे रहा हूँ. जब सच का कोई साथ ना दें तब सिरफिरा के पास आये.सिरफिरा सच के लिए अपना सिर भी कटवाने के लिए तैयार रहता है.
मैं पहले भी कहता आया हूँ और आज ब्लॉग जगत पर कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं.जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं.
दोस्तों-गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
जरुर देखे."लड़कियों की पीड़ा दर्शाती दो पोस्ट"
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय" ब्लॉग की मूल भावना"
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "सच लिखने का ब्लॉग जगत में सबसे बड़ा ढोंग-सबसे बड़ी और सबसे खतनाक पोस्ट"
मैं ना तो नारी ब्लॉग का पाठक हूँ और ना ही रचना जी का कोई विशेष समर्थक हूँ और ही शालिनी जी या शिखा जी का विरोधी हूँ , अपितु मैं शिखा जी के ब्लॉग का पाठक हूँ तो इस विवाद से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है और शायद इस लिए मैं कोई टिप्पणी भी नहीं करता इस लेख पर परन्तु मैं सबका ध्यानाकर्षण करना चाहता हूँ वुछ विशेष लोगों की के कार्य की तरफ (वैसे हम उन से यही आशा करते हैं ) , उन लोगों को को ना तो शिखा जी से कोई सहानुभूति है और ना ही उसने यह लेख उनके समर्थन में लिखा है क्यों की अगर ऐसा होता तो यह पंक्ती ना होती "लेकिन सवाल यह है कि उन्होंने बलि चढ़ाने के लिए ये दो ब्राह्मण कन्याएं ही क्यों चुनीं ?" , इस बात से साफ़ है की कुछ विशेह लोगों ने इस प्रकरण को एक अवसर के रूप में लिया है , और वो इसे जातिगत दिशा देना चाहता है | हो सकता है रचना जी घमंडी हों या तानाशाह हों ,और शानिली जी का नया मंच बनाना भी एक अच्छा निर्णय हो सकता है , परन्तु अनवर जमाल को इस नए प्रकरण को भारतीयता और हिंदुत्व के विरोध के प्रयोग करने का अवसर देना उचित नहीं होगा |
मुझे लगता है आप सभी सम्मानित माताओं बहनों को एक दुसरे की बातों पर गौर करना चाहिए..
महिलाओं के बारे में स्तरहीन बातें कुछ लोगों ने की. और ब्लॉग जगत में कुछ लोगों ने एक अभियान चलाया है संगठित होते एक समाज विशेष को तोड़ने का..उसी क्रम में ये अगली कड़ी है..
पुरुष ब्लोगरों की कुश्ती रोज दिखती थी..मगर हमरी माताएं बहने हमेशा से जोड़ने का काम करती रहीं हैं..
ये मेरी व्यक्तिगत राय है की हम किसी एक व्यक्ति को हमारी शक्ति को आपस में लड़ाकर ख़तम करने का अधिकार नहीं दे सकते..
बाकि आप सभी प्रबुद्ध हैं...
जय श्री राम..
@ अंकित जी ! इसे जातिगत रूप भी आप ही दे रहे हैं और इसे एक अवसर के रूप में भी आप ही ले रहे हैं कि लेडी रचना की तरह आपके वर्गबंधुओं को भी इन दोनों सत्यघोषी लड़कियों का हमारे हक़ में गवाही देना सदा से ही अखरता आया है।
आपकी पीड़ा को हम सभी ख़ूब समझ रहे हैं। थोड़ी बहुत अक्ल दूसरे भी रखते हैं रीयल स्कॉलर भाई ।
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