शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

ये फुल-टू-फटाक मस्ती लेता हुआ वतन....!!


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!अपनी चिंताओं को इस तरह प्रकट कर रहे हैं,अगर आपको लगे कि यह वाजिब है तो हमें जगह दें ,हम आपके आभारी रहेंगे !!
ये फुल-टू-फटाक मस्ती लेता हुआ वतन....!!
              अन्ना-टीम के अनशन समाप्त होने के बाद शायद अब आगे अनशन जैसे कार्यक्रमों की संभावना कम ही दिखाई पड़ती है !,अनशन समाप्त करने की वजह प्रकट में चाहे जो भी बतायी जाए मगर अप्रकट में बहुत सारे रहस्य हैं,जिनका प्रकटीकरण अब शायद कभी नहीं हो,ऐसी संभावना भी बनती है,सबसे बड़ी बात तो यह है कि असंवेदनशील-दम्भी-हरामी और चाटुकारों से घिरे शासकों के सम्मुख बीन बजाने का फायदा भी क्या ?
               मगर यहीं पर आगे चीज़ों के उग्र रूप धारण कर लेने की संभावना भी बनती दिखाई पड़ती है !मोटी-सी बात यह है कि आज की परिस्थितियों में साधारण से साधारण चीज़ों के लिए भी,जनता को अपने निम्नतम हक़ के लिए भी सड़क पर आने को विवश होना पड़ता है तो शासकों की यह अंधेरगर्दी भला कब तक चल सकती है ?
               इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि टीम-अन्ना जैसी प्रतिभाशाली लोगों की टीम ने अब तक सिर्फ एक सवाल भ्रष्टाचार को लेकर ही यह आन्दोलन खडा किया है,जिससे शायद शहर की जनता के सिवा किसी को कोई सरोकार नहीं है,बल्कि इस आन्दोलन के चलते अन्य बहुत सारी जन-उन्मुखी समस्याएँ और देश के अन्य कुछ हिस्सों में अन्य कुछ लोगों द्वारा किये जा रहे बहुत से अत्यंत महत्वपूर्ण आन्दोलन भी हाशिये पर डाल दिए गए हैं !
               टीम-अन्ना को अब यह मंथन करना ही होगा कि अगर सच में वो एक राजनीति-दल होने की राह में है तो देश में बेशक भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है मगर साथ ही अन्य बहुत सारे प्रश्न भी हैं और वो प्रश्न इतने ज्यादा अहम् हैं कि ये सारे प्रश्न एक साथ ही अपने हल किये जाने की मांग करते हैं,किसानों-मजदूरोंऔरतों-बच्चों और ऐसे ही आम लोगों से सम्बंधित ऐसे हज़ारों-हज़ार सवाल हैं जो अपने अति-शीघ्र हल किये जाने की तलाश में हैं .
               अब एक प्रश्न मीडिया का भी है,विदेशी पूँजी की चकाचौंध में डूबा इतराता और अपनी पीठ आप ही ठोकता यह मीडिया आज सबसे सिरफिरा दिखाई देता है,भले ही इस मीडिया ने सैंकड़ों पर्दाफ़ाश किये हों मगर सत्ता के साथ इसके गठजोड़ को कौन नहीं जानता है और इस सांठ-गाँठ से यह क्या-क्या हासिल करता है अगर सच में जनता इसे समझ-जान जाए तो आम जनता इसे भी किसी दिन ठोक डालेगी,समझने वाले लोगों ने तो दरअसल इसका विश्वास करना भी छोड़ दिया है क्योंकि अब वो जानते हैं कि बहुत सारे पर्दाफाशों के बाद बहुत सारी बंदरबांट हुआ करती है और इस बंदरबांट के पूर्ण होते ही वही मीडिया अपना मुहं ऐसा सीम लेता है जैसे इसने कभी मूंह खोला ही नहीं था !मगर अब यह रहस्य भी अब बहुत छिपा नहीं रह गया है !
               बीजिंग ओलिम्पिक के बाद इस ओलिम्पिक तक हम ना सिर्फ खेलों में बल्कि तमाम चीज़ों में चीन नामक एक पडोसी देश के उभार को देखते आ रहे हैं !कल तक भारत से भी फिसड्डी यह देश अगर आज विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है,बल्कि तकरीबन बन ही चुका है तो इसके पीछे ऐसा क्या है,ऐसी कौन-सी बात है जिसने सवा-डेढ़ अरब लोगों का बोझ ढ़ोते एक भूमि को सबसे आगे ला खडा कर दिया है !!और मज़ा यह है कि इसके पीछे कोई रहस्य नहीं है दोस्तों बल्कि सिर्फ एक वजह है मेहनत-मेहनत और मेहनत !!सिर्फ कार्यकुशल कर्मठता ही बेहतर परिणाम दे सकती है मगर इसके ठीक उलट हम क्या हैं काहिल-नकारा....मेहनत से जी भरकर जी चुराने वाले,सिर्फ सपने देखने और ज़रा-ज़रा सी सफलता पर फूल कर कुप्पा हो जाने वाले एक बेवजह की भीड़.....धरती पर एक बेवजह का बोझ....ज़रा अपने इस फालतुपने पर क्षण भर के लिए ही सही,मगर विचार करें हम एकाध करोड़ मीडिया से जुड़े हुए और विचारों में खुद को बड़े तीसमार खाँ समझते हुए लोग !!
                  फिलहाल टी.वी-इंटरनेट-मोबाइल-आईपॉड और अन्य एप्स के चटखारे लेता हुआ कुछ करोड़ मध्यवर्गियों का यह वतन फुल-टू-फटाक मस्ती की नींद सो रहा है,बिना यह जाने और समझे हुए कि बाकी के अरबों लोगों के साथ दरअसल क्या हो रहा है !जिस किसी भी दिन यह जागेगा और और उन अरबों प्रताड़ित लोगों के दुःख-दर्द से खुद को जोड़ेगा तभी कोई सच्ची और संभावना नज़र आती है और एक बात बता दूं अभी तो यह नज़र ही नहीं आ रही !इसलिए आन्दोलनों की परिणिति ऐसी हुई जा रही है !!
                बिना किसी दिशा के कुछ भी करना एक बहुत बड़ा पागलपन है और यह बेतुका पागलपन सबसे पहले तो यहाँ सत्ता करती है,और उससे भी बड़ा उसका विरोध करने वाले जबकि सबका स्वार्थ महज एक है कि शाम-दाम-दंड-भेद किसी भी प्रकार से अपना घर भरना !!और जब जनता को बार-बार "........"बनाकर सिर्फ सरकार बदलना भर आपका मकसद हो तो जनता आखिर कब तक खुद को ठगा जाता महसूस करके भी आपका साथ देगी....मज़ा तो यह है कि सौ अरब लोगों को तो यह तक मालूम नहीं है कि विभिन्न सरकारों द्वारा उनके लिए तरह-तरह की योजनायें लागू हैं और वो पूरी-की-पूरी या कुछ या बहुत सारे अंशों में कुछेक हजार लोगों द्वारा हाइजैक कर ली जा रहीं हैं इसमें सत्ता-दलाल-स्वयंसेवी संगठन-मीडिया और कुछ महत्वपूर्ण लोग पूरी तरह से लिप्त हैं और मैं यह सोच कर चिंतित हूँ कि जब जनता को इस भयानक "घोटाले"(इसके अर्थ को पाठक कई गुणा कर लें !!)का पता चलेगा तब वह इस सबमें लिप्त इन सब लोगों का क्या हश्र करेगी !!??

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सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

आज लिखने-कहने को कुछ भी नहीं है.....

आज लिखने-कहने को कुछ भी नहीं है......और कुछ है भी भीतर से कुछ भी उगलने का मन भी नहीं है....मन आज खट्टा है.....कल से ही हो चूका था 
.....अन्ना-आन्दोलन की समाप्ति की घोषणा ने लाखों-करोडों लोगों की आशाओं पर तुषारापात कर दिया है,इससे यह भी साबित है कि फेस-बुक पर हमारे टायं-टायं करने भर से हम किसी आन्दोलन का हिस्सा नहीं बन सकते....जिस किसी भी जगह पर हम हैं,उसके समर्थन में सड़क पर आ जाने पर ही वह आन्दोलन सफल हो सकता है....जो सरकार या प्रशासन सामान्य-सी नागरिक सुविधाओं को सुचारू रूप से जारी बनाए रखने के लिए अपने नागरिकों का आन्दोलन करने या सड़क पर उतरने का इंतज़ार करता है.....वो भ्रष्टाचार जैसे अपने से जुड़े अभिन्न मुद्दे पर महज कुछेक हज़ार लोगों के खड़े हो जाने पर जागेगा....!!??ऐसी अपेक्षा करना हमारी मूर्खता है.....जिसका परिणाम सामने है.....अब आगे हमारे सामने बस एक ही चारा है........करो.....या मरो... ...!! 

सोमवार, 30 जुलाई 2012

हमारे लिए इस दौर के लिए कुछ सबक.....आमीन.....!!


हमारे लिए इस दौर के लिए कुछ सबक.....आमीन.....!!
बस एक बात बता दे मेरे पगड़ी वाले भाई.....अगर तूने कोई करप्शन नहीं किया है तो ये थेथरई काहे की....लोकपाल ला दे ना.....इसमें दिक्कत क्या है भला.....जैसे मिलजुलकर राष्ट्रपति दे दिया...वैसे ही एक लोकपाल भी दे दे.... !!
एक और बात बता मेरे पगड़ी वाले भाई.....क्या जंतर-मंतर पर बैठे लोग पागल हैं....??वहशी हैं....??दरिन्दे हैं....कि राक्षस.....??....या फिर निजी रूप से तेरे दुश्मन.....??......यार क्या तू और तेरी टीम ही देश की सच्ची खेवनहार है.....??बाकी सब चोर हैं....??अरे यार.....तू इतना बड़ा पढ़ा-लिखा अर्थशास्त्री है.....काहे को ये निर्लज्जता भरी बेईमानियाँ कर रहा है यार....??.....जब सारा देश पुकार रहा है....अन्ना....अन्ना.....अन्ना.....और तू और तेरी टीम शर्म-हीन बयान दे रही है.....अरे यार कुछ तो रहम करो....देश पर नहीं तो खुद पर ही....उम्र के अंतिम पायदान पर भी क्या तुम लोगों को बुद्धि नहीं आती....!!??
एक सवाल मन को हमेशा मथता रहता है...कि जो दर्द वतन के लिए सबको होता है......वो भारत के रहनुमाओं को कभी भी क्यूँ नहीं होता....क्या वो मिटटी खाते हैं कि टट्टी.....!!?? 
अब एक बात आप सब बताईये ना दोस्तों....अगर अगर आपके पास ढेर सारा पैसा हो मगर आपके कामों के कारण आपके वतन की संसार में कोई इज्ज़त ही ना हो तो आप क्या ज्यादा पसंद करेंगे.....अपना पैसा.....या वतन की इज्ज़त ?? 
मैं अन्ना बोल रहा हूँ.....केवल सत्ता ही नहीं.....हम सब भी अपने-अपने स्तर पर तरह-तरह की हरामखोरियाँ-बेईमानियाँ और करप्शन करते हैं.....और यह समाज के प्रत्येक स्तर पर होता है.....आन्दोलन के इस चरण में अपने भीतर झाँक कर हम सब अपने भीतर देखकर अपने बारे में भी सोच लेन कि हममें से कौन कितना बड़ा कमीना है !!
आप ऐसा मत कहिये कि मैं आपलोगों के प्रति कुछ कड़े अथवा असंसदीय शब्दों का उपयोग कर रहा हूँ....सच तो यह है कि जब तक हम खुद के प्रति कड़े नहीं हो जाते.....तब तक धरती पर कोई भी आन्दोलन सार्थक नहीं हो सकता !!
सिर्फ एक मेले या मीनाबाजार की तरह कहीं किसी जगह विशेष पर भारी भीड़ कर देने से कुछ हल नहीं होने को....अगर हम नागरिक भी भ्रष्ट हैं तो लोकपाल तो क्या उसका बाप या उसके बाप का बाप भी इस देश का उद्धार नहीं कर सकता......!!
एक बात जान लीजिये मेरे देश के इज्ज़त-परस्त नागरिकों.....आज हम जो सत्ता को गालियाँ दे रहे हैं.....दिए जा रहे हैं....मगर हम खुद भी कौन से ऐसे पाक-साफ़ हैं....और ऐसा कौन सा काम हमने किया है जिससे हमारा खुद का कोई देश-प्रेम या वतनपरस्ती साबित होती है....??खुद हरामी रहकर दूसरों को उपदेश देने वाले हम....कल को सोचिये कि हमारे बच्चे ही हमसे पूछ बैठे कि "क्या पापा आप भी....??मैंने तो सोचा भी नहीं कि आप भी इन देश-द्रोहियों और हरामियों की तरह कमीने हो.....!!??".....दोस्तों सबसे पहले खुद से कुछ खड़े कीजिये...आप खुद समझ जायेंगे कि आपमें किसी आन्दोलन में शरीक होने कि योग्यता है भी कि नहीं....!!  
बड़ा मज़ा आ रहा है ना आन्दोलन करने में......मगर अगर सत्ता ने लाठियां बरसाई.....तब देखेंगे कि किस्में कितना दम है....!!दोस्तों इस देश को दरअसल आज़ादी कभी मिली ही नहीं थी....सिर्फ गोरे अंग्रेजों द्वारा काले अंग्रेजों को सत्ता का हस्तांतरण भर हुआ था....इसलिए अंग्रेजों के बनाए हुए काले कानूनों को ढोती हुईं तमाम सरकारें आज तक जनता के साथ हर स्तर पर हैवानियत भरा नंगा खेल खेलती रही !!
दोस्तों !बहुत सारे लोग इस आन्दोलन में शरीक होकर अपने सारे पुराने पापों को धो लेना चाहते हैं....वे इस आन्दोलन में शामिल होकर गंगा नहा लेने का लाभ ले लेने की फिराक में हैं....ऐसे लोगों को भी पहचानिए....और उन्हें मार भगाइए....वरना इस आन्दोलन की धार कुंद पड़ जायेगी....!!
और अंत में यही कि एक सच्चे-अच्छे एवं दुर्भावना-हीन समाज को गढ़ने के लिए खुद के भी सच्चे समर्पण की आवश्यकता होती है....ऐसा कभी भी नहीं हो सकता कि हम तो लालच-फरेब-दुर्भावना-उंच-नीच-धर्म-सम्प्रदाय की अपवित्र भावनाओं से भरे हों....और एक अच्छे समाज का बेतुका सपना देखते रहें.....हमेशा एक बात याद रखिये.....कि जिन हथियारों से आप लैस हो....वैसा ही समाज आप गढ़ पाओगे...जय-हिंद....वन्दे-मातरम्.....सत्यमेव-जयते.....!!!  
सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

रविवार, 29 जुलाई 2012

शायद अब हम कुछ भी नहीं बचा सकते.....!!??


शायद अब हम कुछ भी नहीं बचा सकते.....!!??
               बहुत अजीब हालत है मेरे मन की !!बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ, कहना चाहता हूँ,गाना चाहता हूँ,मंचित करना  चाहता हूँ....पल-दर-पल आँखों के सम्मुख बहुत कुछ घटित होता रहता है,जो मानवता को शर्मसार और मुझे व्यथित करता रहता है,जिससे पीड़ित होकर खुद को व्यक्त करना चाहता हूँ मगर साथ ही कुछ भी लिखने में लगने वाले वक्त की अपेक्षा अपने लिखे जाने के "अ-परिणामों " पर विचार करता हूँ तो अपने लिखे हुए को बिलकुल "अ-सार्थक " पाता हूँ !!और इस कारण लेखन-कर्म मुझे एकदम से बेकार और वाहियात कर्म लगने लगता है !!
               रोज जब भी नेट पर बैठता हूँ तब कई प्रकार की वेदना होती है मन में,जो कभी भी बिलकुल से निजी समस्याओं की वजह से नहीं,बल्कि अपने आस-पास घटने वाली दुःख देने वाली घटनाओं के कारण उपजती हैं,जिन्हें मैं मिटा नहीं सकता,मिटा भी नहीं पाता...और कुछ भी नहीं बदल पाने का यह गम मुझे सालने लगता है....जी घुटने लगता है...मगर कोई उपाय भी नहीं होता मेरे पास खुद को राहत देने का...क्योंकि गैर-तो-गैर अपने भी सीधी-सच्ची और सूरज या आईने की तरह साफ़ सी चीज़ तक को नहीं मानते....कोई भी व्यक्ति महज अपने आत्ममुग्ध अहंकार की वजह से अपनी गलतियों को नहीं मानता और ना सिर्फ वो अपनी गलती नहीं मानता बल्कि सीधा-साधा यह तक भी एलान कर डालता है की मैं ऐसा ही हूँ...मेरे साथ मेरी शर्तों पर निभाना है तो ठीक...वरना मैं चला....यह थेथरई धरती के तकरीबन समस्त मानवों में है,जो दरअसल धरती की सारी समस्याओं की जड़ भी है !!
               मगर किसी समस्या का दरअसल कोई ईलाज नहीं है क्योंकि आप किसी को उसकी गलतियों की माफ़ी के लिए विवश तो दूर,उसे इस बात को मानने को भी तैयार नहीं कर सकते कि उसने कोई गलती भी है !! और इस तरह सारी धरती पर ऐसी-ऐसी बातों पर बाबा आदम के जमाने से ऐसे-ऐसे झगड़े होते चले आ रहे हैं, जिनका की मानव जाति से दूर-दूर तलक का भी नाता नहीं होना चाहिए था,मगर ना सिर्फ ऐसा होता चला आ रहा है,बल्कि ऐसा ही होता भी रहना है,तो फिर मेरे या किसी के भी किसी भी माध्यम से खुद को अभिव्यक्त करने का कोई अर्थ भी है ??.....है तो भला क्या अर्थ है....??
               हर महीने की किसी तारीख पर जब  नेट का कनेक्शन ख़त्म हो जाता है तब कई दिनों तक इसी उधेड़-बून में रहता हूँ कि उसे फिर से भरवाऊँ कि ना भरवाऊँ....क्योंकि मेरा जो काम है वो सिर्फ मेरे कुछ भी व्यक्त-भर कर देने से खत्म नहीं हो जाता....दरअसल मेरा काम तो मेरे खुद को व्यक्त करने के बाद ही शुरू होता है।....जो कि कभी शुरू ही नहीं होता.....मेरे भीतर वेदना चलती रहती है....चलती ही रहती है !!
              इस वेदना का क्या करूँ मैं....लोगों की आत्मा को जगाने के प्रयास में लगी मेरी अभ्यर्थना....मेरा लेखन अपने किसी लक्ष्य को पाता नहीं प्रतीत होता ऐसे में फेसबुक का क्या करना है...ब्लॉगों का क्या करना है...या अन्य किसी भी अभिव्यक्ति का क्या होना है.....और जब कुछ होना ही नहीं है...तब मुझे भी भला क्यूं होना है......इन्हीं सब छिछली बातों में मैं झूठ-मुठ का वक्त शायद जाया करता आया हूँ,और शायद मरने तक ऐसा ही चलता भी रहेगा.....!!
             ऐसे में, मैं नहीं जानता कि मैं धरती पर अपने होने का क्या करूँ......मैं नहीं जानता कि हम सब धरती पर खुद को धोने के अलावा अपने होने से अपने होने का क्या साबित कर रहें,जबकि धरती आदमी से कलंकित है......और मानवता भी आदमी से शर्मसार है....!!??

भाई आमिर.....इन बुलंद हौसलों को सलाम....!!


         भाई आमिर.....इन बुलंद हौसलों को सलाम....!!
       एक बार फिर आमिर मैं तुम्हारे प्रोग्राम को देखते हुए कई बार भीतर ही भीतर रोता रहा,ये आंसू किन्हीं लोगों के जज्बे के,ईमानदारी के,हिम्मत के और अपने काम द्वारा समाज के सम्मुख एक मिसाल बन जाने वाली प्रेरणा के लिए थे,मैं रोया इस बात पर भी कि नौ साल का एक बच्चा,सब्जी बेचने वाली कोई औरत,कोई अशक्त-विकलांग व्यक्ति,तो कोई अशिक्षित व्यक्ति या कोई बूढ़ा-बुजुर्ग व्यक्ति किसी दर्द या समस्या को सामने पाकर बजाय हिम्मत हारने के उसके सामने कैसे दहाड़ कर खड़ा हो जाता है और वह समस्या या वो दर्द कैसे उसके सामने दुम दबाकर भाग खड़ी होती है !! मेरे सामने इससे भी बड़ी बात यह है कि कोई भी व्यक्ति किस प्रकार किसी विकट परिस्थिति के सामने आने पर अपने हौसले से उसे बौना साबित कर कर देता है और अपने कर्म के लिए वो जिस भी किसी क्षेत्र का चुनाव करता है उस क्षेत्र का कद भी विराट हो जाता है....आमिर इन बुलंद हौसलों को सलाम मगर एक सवाल मुझे अपने आप से भी है हम पढ़े-लिखे लोग जो अपनी जिन्दगी में टाईम नहीं है-टाईम नहीं का रोना रोता रोते है और अपनी जिन्दगी की अनगिनत समस्यायों को लोगों को गिनाते नहीं थकते....और इस तरह इन बहानों से खुद को अखिल/अखंड सामाजिकता और सरोकारों से बचाए रखते हैं.....ऐसे कार्यक्रमों से शायद हम जैसों को भी कोई दिशा मिले और हम जैसे समाज के लिए नकारा लोग भी समाज की इन जद्दोजहदों में खुद को शामिल कर खुद का ज़िंदा होना साबित कर सकें !!जय-हिंद....वन्दे-मातरम्...सत्यमेव-जयते !!    

http://rajivthepra.blogspot.in/ 
सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!