कभी कभी कुछ शब्दों का इस्तेमाल बार बार गलत सन्दर्भ में होने के कारण उसका अर्थ ही बदल जाता है |जिस प्रकार से फतवा और जिहाद का गलत इस्तेमाल हुआ है उसी प्रकार से कट्टरवाद का इस्तेमाल भी गलत ही होता है |
फतवा शब्द सुनते ही ऐसा लगता है की किसी मुल्ला ने अपने मुसलमान पे किसी हुक्म को मानने के लिए ज़बरदस्ती की होगा | जबकि इस्लाम का कानून है दीन में में कोई ज़बर्दस्ती नहीं है| आप किसी को यह तो बता सकते हैं की इस्लाम की नज़र में किसी काम के लिए अल्लाह का क्या हुक्म है लेकिन आप ज़बरदस्ती किसी इंसान को मानने के लिए नहीं कर सकते |
इसी प्रकार से जिहाद और मुजाहिदीन शब्द सुनते ही ऐसा लगता है किसी आतंकवादी हमले की बात हो रही है |जबकि अपने स्वयं के भीतर की बुराइयों के खिलाफ लड़ने को जिहाद कहा जाता है या फिर अपनी रक्षा में हथियार उठाने को जिहाद कहते हैं |
इसी प्रकार कट्टरवाद शब्द ध्यान में आते ही ऐसा लगता है की कोई अड़ियल मुसलाम या हिन्दू है जो सामने वाले के धर्म को बुरा कहना और उसकी बुराई निकलना अपना धर्म समझता है जबकि कट्टरवाद का शाब्दिक अर्थ है, अपनी बुनियाद, सभ्यता, संस्कारों से कट्टरता के साथ जुड़े रहना |
शब्द इस्लाम भी ज़बान पे आते ही जो शब्द पहले ध्यान आता है वो है आतंकवाद और कट्टरवाद | ‘इस्लाम’ शब्द असल मैं शब्द तस्लीम है, जो शांति से संबंधित है|