शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

बाबा रामदेव HBFI पर

बरसों पहले जब दुनिया बाबा की दीवानी थी। तब भी हमने लोगों को बताया था कि योग के नाम पर बिज़नैस किया जा रहा है। पश्चिम में योग की मूल आत्मा वैराग्य को ग्रहण नहीं किया जा रहा है बल्कि वहां की औरतें अपने को  आकर्षक बनाने के लिए बाबाओं से योग सीखती हैं और इसी मक़सद से वहां के पुरूष भी योग सीख रहे हैं। तनाव से मुक्ति के लिए भी वे योग को एक एक्सरसाइज़ के तौर पर ही लेते हैं। लेकिन हमारे कहने पर तब उचित ध्यान ही नहीं दिया गया बल्कि हमें कह दिया गया कि आप तो हैं ही देश के ग़द्दार ।
जिन्हें राष्ट्रवादियों का अग्रदूत माना जा रहा था, उनका कच्चा चिठ्ठा आज सबके सामने है तो समझा जा सकता है कि जो लोग इनके साथ थे या इनके पीछे थे, उनके कर्म कैसे होंगे ?
आज बाबा और उनका राज़दार बालकृष्ण दोनों ही चिंतातुर नज़र आते हैं। वे तनाव दूर करने के लिए ख़ुद योग का सहारा क्यों नहीं लेते ?
गद्दी पर क़ब्ज़े के लिए गुरू जी को ऊर्ध्वगमन  करा देने वाले शिष्य कुछ भी कर सकते हैं। अपने ही जैसे राजनीतिज्ञों से अगर वह भी दूसरे बाबाओं की तरह सैटिंग कर लेते तो आज उनके आभामंडल पर यूं आंच न आती। जो अफ़सर कल तक पांव छूते थे वे आज गला पकड़ रहे हैं।
ये बाबा तो लोक व्यवहार की नीति तक से अन्जान निकले।
आदरणीय श्री महेंद्र श्रीवास्तव जी का लेख इन सभी बातों को बेहतरीन अंदाज़ में बयान करता है और यह तारीफ़ दिल से निकल रही है। 
इस मंच को एक बेहतरीन लेख देने के लिए आपका शुक्रिया !
उनके लेख का लिंक नीचे दिया जा रहा है

अविनाश वाचस्पति जी का लेख भी इसी विषय पर एक करारा व्यंग्य है। उसका लिंक यह है

'ब्लॉगर्स मीट वीकली' के ज़रिये ब्लॉग पर मीत आयोजित करने वाला पहला ब्लॉग भी यही  है .

8 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

एक शब्द शालीन नहीं लगा पोस्ट का इसलिए हटा रही हूँ .वैसे पोस्ट दिमाग खोलने वाली है और यह ब्लॉग भी .आभार

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

मोहतरमा ! इसमें कोई भी शब्द अशालीन नहीं है लेकिन अगर आपकी पसंद के खि़लाफ़ है तो आप उस शब्द को बदल दीजिए या फिर उस शब्द की जगह बिंदी लगा दीजिए। पोस्ट हटाना तो ठीक नहीं है। अगर आप एक एक शब्द पर पूरी पोस्ट हटाती रहीं तो फिर इस मंच पर कैसे कोई पोस्ट लगाने आएगा ?
आप एडिटर हैं, अपने एडिटिंग के अधिकार का प्रयोग करना भी तो आपको सीखना चाहिए।

Shikha Kaushik ने कहा…

केवल एक शब्द हटाया है .शायद आपको ग़लतफ़हमी हो गयी है की मैं यह पोस्ट हटा रही हूँ .स्वयं सोचे कौनसा शब्द अशालीन था ?पोस्ट महिला ब्लोगर भी पढ़ती हैं -ये तो ध्यान रखना ही चाहिए .

Shalini kaushik ने कहा…

mahendra ji ka ye aalekh baba ko lekar likha gaya ek utkrisht aalekh hai ise yahan prastut kar dr.sahab aapne bahut hi uttam karya kiya hai.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

आपने मेरे लेख को यहां स्थान दिया, इसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूं।

मेरी एक रिक्वेस्ट आप सभी लोग मान लें, मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि आप सभी मुझे बडे भाई का सम्मान देते हैं और मै इसके लिए दिल से आभारी हूं।
लेकिन मैं देखता हूं कि आप जब भी मेरे नाम का उल्लेख करते हैं तो मेरे नाम के आगे "आदरणीय" शब्द का इस्तेमाल करते हैं। इससे मुझे ऐसा लगता है कि आपने मुझे ब्लाग में तो स्थान दिया है, पर परिवार से दूर रखा है। प्लीज मेरे साथ ऐसा ना करें, और सिर्फ नाम का ही उल्लेख करें।
कोई भी अन्यथा न ले। प्लीज

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

:) :)
आ. महेंद्र जी ! आदरणीय शब्द के बिना आप ज्यादा सहज महसूस करते हैं तो यही सही , बात तो आपको यह अहसास कराने भर की है कि आप हमारे बड़े हैं और हमारे लिए आदर के पात्र हैं . आपकी इच्छा का सम्मान अवश्य किया जाएगा.
शुक्रिया .

Paise Ka Gyan ने कहा…

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Paise Ka Gyan ने कहा…

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