सोमवार, 15 अप्रैल 2013

कट्टरवादी व्यक्ति ही सहिष्णु हो सकता है



कभी कभी कुछ शब्दों का इस्तेमाल बार बार गलत सन्दर्भ में होने के कारण उसका अर्थ ही बदल जाता है |जिस प्रकार से फतवा और जिहाद का गलत इस्तेमाल हुआ है उसी प्रकार से कट्टरवाद का इस्तेमाल भी गलत ही होता है |

फतवा शब्द सुनते ही ऐसा लगता है की किसी मुल्ला ने अपने मुसलमान पे किसी हुक्म को मानने के लिए ज़बरदस्ती की होगा | जबकि इस्लाम का कानून है दीन में में कोई ज़बर्दस्ती नहीं है| आप किसी को यह तो बता सकते हैं की इस्लाम की नज़र में किसी काम के लिए अल्लाह का क्या हुक्म है लेकिन आप ज़बरदस्ती किसी इंसान को मानने के लिए नहीं कर सकते |

इसी प्रकार से जिहाद और मुजाहिदीन शब्द सुनते ही ऐसा लगता है किसी आतंकवादी हमले की बात हो रही है |जबकि अपने स्वयं के भीतर की बुराइयों के खिलाफ लड़ने को जिहाद कहा जाता है या फिर अपनी रक्षा में हथियार उठाने को जिहाद कहते हैं |

इसी प्रकार कट्टरवाद शब्द ध्यान में आते ही ऐसा लगता है की कोई अड़ियल मुसलाम या हिन्दू है जो सामने वाले के धर्म को बुरा कहना और उसकी बुराई निकलना अपना धर्म समझता है जबकि कट्टरवाद का शाब्दिक अर्थ है, अपनी बुनियाद, सभ्यता, संस्कारों से कट्टरता के साथ जुड़े रहना |

शब्द इस्लाम भी ज़बान पे आते ही जो शब्द पहले ध्यान आता है वो है आतंकवाद और कट्टरवाद | ‘इस्लाम’ शब्द असल मैं शब्द तस्लीम है, जो शांति से संबंधित है|
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जब से बॉब २०१३  की वोटिंग शुरू हुई है ब्लॉगजगत के एक ऐसे गुट में हलचल सी शुरू हो गयी है जो खुद को इस ब्लॉगजगत का खम्बा बना कर पेश किया करता था  । इस चुनाव ने उनको ऐसा आईना दिखाया की उन्हें यही समझ नहीं आ रहा की हँसे या रोएँ ।

यह वही लोग हैं जिन्होंने खुद को बड़ा ब्लॉगर और ब्लॉगजगत का जानकार साबित करने के लिए पिछले २ सालों  में न जाने पब्लिसिटी के कितने हथकंडे अपनाये लेकिन ज्ञान की कमी और लेखनी में दम न होने के कारण उनका नाम केवल उनके मित्रों तक ही सीमित रह गया ।

ताज्जुब की बात तो यह है की अब
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नवरात्र  की बधाई व शुभकामनाएं

इस समय 'बॉब्स अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार-2013', चर्चा में है। पुरस्‍कार के के लिए ऑनलाइन वोटिंग कराई जा रही है |इस प्रतियोगिता का परिणाम 07 मई को घोषित किया जाएगा और विजेताओं को ये पुरस्‍कार 18 जून 2013 को जर्मनी में प्रदान किए जाएंगे। यह सभी ब्लॉग जब चुने गए हैं तो कुछ ख़ास अवश्य होंगे | कुछ हो या न हो लेकिन इनमे विविधता अवश्य है |

मुझे इस बात की ख़ुशी है की चलो सही मायने में ईमानदारी से पुरस्कार की शुरुआत तो हुई और इस ब्लॉगजगत को टिपण्णी माफियाओं और गुटबंदी जैसे बीम
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मैं राजनीति पे नहीं लिखा करता लेकिन कभी कभी कुछ ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि लिखना ही पड़ता है | राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मियां के बाद अब प्रधानमंत्री पद के लिए जोड़ तोड़ शुरू हों चुकी है|

यह हमारी बदकिस्मती है कि हमने इस विश्व को धर्मो, रंगों और नस्लों में बाँट दिया है और उसी को आधार बना के सत्ता पे कब्जा करने की कोशिश होती रहती है |

प्रधान मंत्री कोई भी बने लेकिन ऐसा होना चाहिए जिसे इंसानियत का धर्म पता हों | किसी भी देश को चलाने वाले के लिए यह आवश्यक है की वो अपने देश के सभी नागरिको को स
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जौनपुर जो “शिराज़-ए-हिंद“ के नाम से भी मशहूर हैं, भारत के उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर एवं लोकसभा क्षेत्र है। जौनपुर एक शतक तक मध्यकाल में शर्की शासकों की राजधानी रह चुका है |यह शहर गोमती नदी के दोनों तरफ़ फैला हुआ है। गुप्तकालीन मंदिर ,और मुद्राओं का यहाँ पे पाया जाना इस ओर भी इशारा करता है कि गुप्तकाल में यह नगर व्यापार का केंद्र रहा होगा| 1394 के आसपास मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में स्थापित किया और इसे अपने स्वतंत्र राज्य की राजधानी(1394-1479) बनाया | जौनपुर इब्राहिमशाह शर


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