मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
"आज बड़ा बेचैन है यार तू,क्या बात है ?"
"आज दिल बड़ा कुटुर-कुटुर कर रहा है यार !"
"कुटुर-कुटुर ?अबे ये क्या बला है ?"
"कुटुर-कुटुर माने वही,जो तुने अभी-अभी कहा,बेचैन !"
"तो सीधा-सीधा बोला कर ना,यूँ ऊट-पटांग क्या बकता रहता है ?"
"यार,कल से जो अपना गणतंत्र-दिवस पार हुआ ना,तब से ही मेरा दिल बड़ा ऐसा-वैसा-सा हो रहा था यार !"
"क्यों ?इस गणतंत्र-दिवस ने क्या बना-बिगाड़ दिया ?"
"अबे, इसीलिए तो बेचैन हूँ मैं कि ये गणतंत्र-दिवस जो बार-बार आता है और आकर चला जाता है,मगर उससे अपन जैसे लोगों का कुछ बनता क्यूँ नहीं !"
"अबे ऐसा क्या बिगड़ गया है तेरा ओ मोटे कद्दू कि बकवास किये जा रहा है तू ?"
"अबे,मैं मेरी नहीं,बल्कि अपन जैसे लोगों की बात कर रहा हूँ,जो गरीबी में जीते-जीते खटते-खटते मर-खप जाते हैं मगर जीवन का यह संघर्ष कभी ख़त्म होने को ही नहीं आता !"
"अबे ये फिलासिफी झाड़ने लगा तू,आज कोई दर्शन-शास्त्र वगैरह पढ़ लिया क्या ?"
"अबे दर्शन वगैरह तो नहीं, मगर छूट्टी के कारण कई अखबार जरूर पढ़ लिए सवेरे-सवेरे "
"तो ऐसा क्या लिखा हुआ था अखबारों में कि अब तू मेरा भेजा खा रहा है ?"
"तो तू भी पढ़ कर देख ले ना खुद ही,तुझे भी पता चल जाएगा कि मैं बेचैन क्यूँ हूँ !"
"क्यों ?अखबार तो बहुत से लोगों ने पढ़ा है मगर कोई तेरी तरह बड़-बड़ तो नहीं कर रहा,तू पागल हो जाएगा तो क्या सब पागल हो जायेंगे?"
"अरे यार पहले इन अखबारों को तो देख,ये देख,ये देख,ये देख,क्या लिखा है इनमें बड़े-बड़े नामचीन लोगों ने,कि भारत का गणतंत्र अब व्यस्क हो रहा है,परिपक्वा हो रहा है !"
"तो क्या गलत लिखा है या कहा है इन लोगों ने,अबे देख ना चारों तरफ कैसी लड़ाई-सी छिड़ी हुई है भ्रष्टाचार के खिलाफ,देखता नहीं आन्दोलन पर आन्दोलन हों रहें हैं !"
"अबे ये आन्दोलन हैं कि मेले हैं जैसे मिठाईयां बंट रही हैं रेवड़ियों की तरह ?"
"तू मजाक उड़ा रहा है इन सबका ?"
"मैं ना तो मजाक कर रहा हूँ,और ना मजाक उड़ा रहा हूँ किसी का,तू आँख खोल कर तो देख कि कैसे-कैसे लोगों की शिरकत है यहाँ,क्या इन आन्दोलनों के आयोजक यह जानते भी हैं कि कौन कहाँ का कैसा व्यक्ति उनके बीच आकर शामिल हो गएँ हैं और जिस पवित्र मशाल को वो पकड़ कर सरे-राह चल रहे हैं,वो मशाल को छूने लायक भी चरित्र नहीं उनका !"
"अबे वो कहावत सुनी नहीं तूने कि गेहूं के साथ घुन......!"
"हाँ-हाँ सुनी है ना सब मैंने भी ,मगर उस कहावत का यहाँ कोई लेना-देना नहीं है,यहाँ तो अंधे ही मशाल जलाने चले हैं,जिनका खुद का रास्ता ही गलत है,वो लोगों को रास्ता दिखाएँगे !?"
"अबे वो कहावत सुनी नहीं तूने कि गेहूं के साथ घुन......!"
"हाँ-हाँ सुनी है ना सब मैंने भी ,मगर उस कहावत का यहाँ कोई लेना-देना नहीं है,यहाँ तो अंधे ही मशाल जलाने चले हैं,जिनका खुद का रास्ता ही गलत है,वो लोगों को रास्ता दिखाएँगे !?"
"अबे ज्यादा बकवास मत कर,वरना पब्लिक पीटेगी तूझे,एक तो पब्लिक सड़क पर आकर आन्दोलन कर रही है और तू है कि कुचरनी करने लगा!"
"अरे नहीं यार ऐसे आन्दोलनों का यही तो मजा है कि शरीफ तो शरीफ,चोर भी अपनी रोटी सेंक डालते हैं पराई आग में !"
"तो तू क्या विकल्प सुझाता है बे छिद्रान्वेषी ?जो हो रहा है उसे देख,समझ में आता है तो तू भी शरीक हो जा और नहीं समझ आता तो पडा रह अपने दड़बे में,बेमतलब की क्यूँ हांकता रहता है ?"
"हाँ,तू सही कहता है मगर मेरा मतलब यह नहीं कि हमें उसमें शरीक नहीं होना,मैं तो सिर्फ एक विसंगति की बात कर रहा हूँ,तूने ही आन्दोलन की बात की,वरना मैं तो कोई और ही बात कर रहा था !"
"हाँ तो बुद्धिजीवी साहब जी आप भी फरमाओ ना अपने विचार,हम आपके विचार-दर्शन के प्यासे हैं हूजूर !"
"अबे हर गणतन्त्र के दिन इसके कितने कसीदे पढ़े जाते हैं मगर हर गणतंत्र-दिवस के आते-आते इसके गणों को स्थिति खराब होती चली जाती है,सिर्फ तंत्र के चारणों की स्थिति ही सुधरती दिखती है,जो मलाई खा-खाकर मोटे हुए चले जाते हैं,मगर इनका पेट कभी भरता ही नहीं !"
"अबे हर गणतन्त्र के दिन इसके कितने कसीदे पढ़े जाते हैं मगर हर गणतंत्र-दिवस के आते-आते इसके गणों को स्थिति खराब होती चली जाती है,सिर्फ तंत्र के चारणों की स्थिति ही सुधरती दिखती है,जो मलाई खा-खाकर मोटे हुए चले जाते हैं,मगर इनका पेट कभी भरता ही नहीं !"
"अबे पेट की आग और वासना की भूख कभी किसी की मिटती है क्या ?दो रुपल्ली से सौ,सौ से हजार,हजार से लाख,लाख से करोड़,करोड़ से अरब,अरब से खरब.....!!"
"अब बस भी कर...आदमी की इस फिलासिफी का अपन को भी पता है मगर इसी पता होने का बड़ा मलाल भी है कि आदमी साला इतना स्वार्थी,इतना लालची,इतना फरेबी-मक्कार क्यूँ होता है कि अपनी ही जात को बार-बार धोखा देकर बार-बार आदमियत को कलंकित तो करता ही है, आदमी नाम की जात पर संशय भी पैदा करता है,इससे वफादार तो साला कुत्ता होता है कुत्ता,जो अपने मालिक की लात भी खाता है तो भी उसीका वफादार बना रहता है,क्या यह आदमी जानवरों से भी कुछ नहीं सीख पाता !"
"अबे अब तू सचमुच पिटने का काम ही कर रहा है,आदमी की तुलना तू कुत्ते और अन्य जानवरों से कर ही नहीं रहा बल्कि आदमी को कुत्ते से भी गया-गुजरा बता रहा है!"
"तो इसमें गलत भी क्या कह रहा हूँ मैं,आदमी इस धरती का वह सबसे अजूबा जीव है जो हमेशा हर वक्त बड़ी-बड़ी बातें करता है,मगर उसपे खुद कभी अमल नहीं करता !अगर आदमी अपनी कही गयी बातों पर पच्चीस प्रतिशत भी अमल कर ले तो दुनिया सचमुच बढ़िया बन सकती है !"
"सुन ना बे,इस वक्त तो मेरी दुनिया खुद खराब हुई जा रही है,पेट में बड़े-बड़े चूहे कूद रहे हैं,चल ना पहले इनको ख़त्म करने के लिए बिल्लियाँ पकड़ कर लाते हैं...!"
"हाँ यार !तेरी बात सुनकर मेरे पेट में भी कुछ वैसा-वैसा सा ही होने लगा है...चल-चल....!"
(और दोनों यार बातों की इस फिलासफी से निकल कर आटे-दाल की हकीकत में गम हो जाते हैं !!)
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