रविवार, 13 नवंबर 2011

जितनी बंटनी थी बंट चुकी ये ज़मीं,

जितनी बंटनी थी बंट चुकी ये ज़मीं,
अब तो बस आसमान बाकी है |
सर क़लम होंगे कल यहाँ उनके,
जिनके मुंह में ज़बान बाक़ी है ||
http://hbfint.blogspot.com/2011/11/17-happy-childrans-day.html

3 टिप्‍पणियां:

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

वाह क्या सटीक कहा है ।

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत कुछ पठनीय है यहाँ आपके ब्लॉग पर-. लगता है इस अंजुमन में आना होगा बार बार.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद !

Mamta Bajpai ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आना अच्छा लगा

बहत अच लिकते है आप