गुरुवार, 2 अगस्त 2012

आज लिखने-कहने को कुछ भी नहीं है.....

आज लिखने-कहने को कुछ भी नहीं है......और कुछ है भी भीतर से कुछ भी उगलने का मन भी नहीं है....मन आज खट्टा है.....कल से ही हो चूका था 
.....अन्ना-आन्दोलन की समाप्ति की घोषणा ने लाखों-करोडों लोगों की आशाओं पर तुषारापात कर दिया है,इससे यह भी साबित है कि फेस-बुक पर हमारे टायं-टायं करने भर से हम किसी आन्दोलन का हिस्सा नहीं बन सकते....जिस किसी भी जगह पर हम हैं,उसके समर्थन में सड़क पर आ जाने पर ही वह आन्दोलन सफल हो सकता है....जो सरकार या प्रशासन सामान्य-सी नागरिक सुविधाओं को सुचारू रूप से जारी बनाए रखने के लिए अपने नागरिकों का आन्दोलन करने या सड़क पर उतरने का इंतज़ार करता है.....वो भ्रष्टाचार जैसे अपने से जुड़े अभिन्न मुद्दे पर महज कुछेक हज़ार लोगों के खड़े हो जाने पर जागेगा....!!??ऐसी अपेक्षा करना हमारी मूर्खता है.....जिसका परिणाम सामने है.....अब आगे हमारे सामने बस एक ही चारा है........करो.....या मरो... ...!! 

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